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पार्श्वनाथकी पट्ट परंपरायमें ७३ तैरासी प्राचार्य हुए है. तिनमेंसे सर्वसें पिबला सिद्ध सूरि नामे आचार्य सांप्रति कालमें मारवाममें विचरेहै, ह. मने अपनी आंखोस देखाहै, जिसकी पट्टावलि आज पर्यंत विद्यमान है, तिस पार्श्वनाथजीके होनेमे यही प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण बलवंतहै.
प्र. ८०-कौन जाने किसी धूर्त्तनें अपनी कस्पनासें श्रीपार्श्वनाथ और तिनकी पट्ट परंपराय लिख दीनी होवेगी, इससे हमकों क्योंकर श्री पार्श्वनाथ हुए निश्चित होवें ?
न.-जिन जिन आचार्योंके नाम श्रीपार्श्वनाथजीसे लेके आज तक लिखे हुए है, तिनोमेंसें कितनेक आचार्योंने जो जो काम करहै वे प्रत्यक्ष देखने में आते है जैसे श्री पार्श्वनाथजीसें बड़े ६ पट्ट पर श्री रत्नप्रन्न सूरिजीने वीरात् ७० वर्ष पोले नपकेश पहमें श्री महावीर स्वामीकी प्रतिष्टा करी सो मंदिर और प्रतिमा आज तक विद्यमान है, तथा अयरणपुरकी गवनीसें ६ को. सके लगनग कोरंटनामा नगर नऊम पमा है,
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