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पाट हुए है. नंदीसूत्रकी वृत्तिमें श्री मलयगिरि आचार्य ऐसा लिखाहै कि श्री स्कंधिलाचार्यके समयमे बारां वर्ष १२ का ऽग्निक काल पमा, ति. समें साधुयोंकों निका न मिलनेसे नवीन पढना और पिब्ला स्मरण करना बिलकुल जाता रहा. और जो चमत्कारी अतिशयवंत शास्त्रथे वेनी बहुत नष्ट हो गये. और अंगोपांगनी नावसे अर्थात् जैसे स्वरूप वालेथे तैसे नहो रहै. स्मरण परावर्तनके अन्नावसे जब बारां बर्षका उर्निद काल गया और सुन्निद हुआ, तब मथुरा नगरोमें स्कंधिलाचार्य प्रमुख श्रमण संघने एकठे होके जो पाठ जितना जिस साधुके जिस शास्त्रका कंठ याद रहा सो सर्व एकत्र करके कालिक श्रुत अंगादि और कितनाक पूर्वगत श्रुत किंचित्मात्र रहा हुआ जोमके अंगादि घटन करे, इस वास्ते इसको माथुरि वाचना कहते है. कितनेक प्राचार्य ऐसें कहतेहै १२ वर्षके कालके वसमें एक स्कंधिलाचार्यकों वर्जके शेष सर्वाचार्य मर गये थे. गीतार्थ अन्य कोश्नी नही रहा था,
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