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आर्यरहितसूरि तक सर्व सूत्रोंके पाठ नपर चा रोहो अनुयोगकी व्याख्या अर्थात् जिस श्लोकमें चरणकरणानुयोगकी व्याख्या जिन अकरोंसे क रतेथे तिसही श्लोकके अदरोंसे व्यानुयोगकी व्याख्या और धर्मकथानुयोगकी और गणितानु योगकी व्याख्या करते थे. इसतरें अर्थ करणेकी रीती श्री सुधर्मस्वामीसे लेक श्री आर्यरक्षितमूरि तक रही, तिनके मुख्य शिष्य विंध्यउर्वलिका पु. पादिकी बुद्धि जब चारतरेके अर्थ समझनेमें गनराइ तब श्री आर्यरक्षितसूरिजीने मनमें वि. चार करा के इन नव पुर्वधारीयोंकी बुझिमें जब चार तरेका अर्थ याद रखना कठिन पड़ता है, तो अन्य जोव अल्प बुद्धिवाले चार तरेका सर्व शा. स्त्रोंका अर्थ क्युं कर याद रखेंगे, इस वास्ते सर्व शास्त्रोंके पागेका अर्थ एकैक अनुयोगकी व्याख्या शिष्य प्रशिष्योंकों सिखा. शेष व्यवद करी सोइ व्याख्या जैन श्वेतांबर मतमे आचार्योकी अ विग्नि परंपरायसे आज तक चलती है, तिनके पीने स्कंधिलाचार्य श्री महावीरजीके २५ मे
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