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आपसमें मिलान करे तब इग्यारे अंग तो संपूर्ण हुए, परंतु चौदह पूर्व सर्व सर्वथा नूल गए, तब संघको आझासें स्थुलनद्रादि ५०० सौ तीक्ष्ण बुध्विाले साधु नैपाल देशमें श्रीनबाहुस्वा. मोके पास चौदह पूर्व सीखने वास्ते गये, परंतु एक स्थुलनास्वामीने दो वस्तु न्यून दश पूर्व पागर्थसे सीखे. शेष चार पूर्व केवल पाठ मात्र सीखे. श्री नबाहुके पाट नपर श्री स्थुलन स्वामी वैठे, तिनके शिष्य आर्यमहागिरिसुहस्तिसे लेके श्री वजस्वामी तक जो वजस्वामी श्री महावीरसें पीछे एन्ध में वर्ष विक्रम संवत् ११४ में स्वर्गवासी हुए है तहां तक येह आचार्य दश पूर्व और इग्यारे अंगके कंट्याग्र ज्ञानवाले रहे, तिनके नाम आर्य महागिरि १ आर्यसुहस्ति श्री गुणसुंदरसूरि ३ श्यामाचार्य । स्कंधिलाचार्य ५ रेवतीमीत्र ६ श्री धर्मसूरि ७ श्री नगुप्त श्री गुप्त ए बजस्वामी १० श्री बजस्वामीके समीपे तोसलीपुत्र आचार्यका शिष्य श्री आर्यरक्षित सूरिजीने साढे नव पूर्व पागर्थसे पवन करे. श्री
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