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गतिमें उत्पन्न होता है. माया कपटसें दूसरे के साथ ठगी करे ? अपने करे कपटके ढांकने वास्ते जुठ बोले २ कमती तोल देवे अधिक तोल लेवे ३ गुसावंत के गुण देख सुनके निंदा करे ४ चार काम करनेसें मनुष्य गति में उत्पन्न होता है; नकि स्व नाव वाले स्वनावें कुटलितासें रहित होवे १ स्वनावेहीं विनयवंत होवे श् दयावंत होवे ३ गुणवंतके गुण सुनके देखके द्वेष न करे ४ ॥ चार कारणसें देवगतिमें उत्पन्न होता है; सरागी साधुपला पालनेसें १ गृहस्थ धर्म देश विरति पालनेसें अज्ञान तप करनेसें ३ अकाम निर्जरासे ४ तथा जैसी नरक तिर्यंच गतिमे जीव वेदना जोगता है और मनुष्यपणा अनित्य है. व्याधि, जरा, मररा वेदना करके बहुत जरा हुआ है. इस वास्ते धर्म करणे में उद्यम करो. देवलोक में देवतायोंकों मनुष्य करतां बहुत सुख है. अंतमे सोनी अनित्य है. जैसे जीव कर्मोसें बंधाता है और जैसें जीव कर्मसें बुटके निर्वाण पदकों प्राप्त होता हैं और काय के जीवांका स्वरूप ऐसा
पीछे साधुका
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