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परिनिर्वाणनीहै श्व परिनिवृत्तनीहै ३५ जीवहिं. सान्नीहै २५ जूग्नीहै २६ चौरीनोहै २७ मैथुननीहै २७ परिग्रहनीहै श्ए क्रोध, मान माया, लोन, राग, द्वेष, कलह, अन्याख्यान, पैशुन, परनिंदा, माया, मृषा, मिथ्यादर्शन, शल्य येनी सर्व है. इन पूर्वोक्त जीव हिंसासें लेके मिथ्यादर्शन पर्यंत अगरह पापोंके प्रतिपदी अगरह प्रकारके त्यागन्नीहै ३० सर्व अस्ति नावकों अस्ति रूपे और नास्तिनावकों नास्तिरूपें नगवंतने कहाहै ३१ अछे कर्मका अहा फल होताहै बुरे क
र्माका बुरा फल होताहै ३२ पुण्य पाप दोनो संसारावस्थामें जीवके साथ रहतेहै ३३ यह जो नियोंके वचनहै वे अति उत्तम देव लोक और मोदके देने वालेहै ३५ चार काम करने बाला जीव मरके नरक गतिमें नत्पन्न होताहै. महा हिंसक, क्षेत्र वामी कर्षण सर सोसादिसें महा जीवांका बध करनेवाला १ महा परिग्रह तृभा वाला ५ मांसका खाने वाला ३ पंचेंश्यि जीवका मारने वाला ४ ॥ चार काम करने वाला मरके तिर्यंच
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