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धनाढ्य गृह पत्नी श्री.
ଅଷ୍ଟି
प्र. ६४ - श्रीमहावीरस्वामीनें किसतरेंका
धर्म प्ररूप्या था
न. - सम्यक्त पूर्वक साधुका धर्म और श्रावकका धर्म प्ररूप्या था
प्र. ६५ सम्यक्तं पूर्वक किसकों कहते है. उ. - नगवंतके कथनकों जो सत्य करके श्र, तिसकों सम्यक्त कहते है, सो कथन यहहै. लोककी अस्ति है १ अलोकनी है २ जीवनी है ३ जीवजी ४ कर्मका बंधनी है ५ कर्मका मोक्ष जीहै ६ पुन्यन्नी है 9 पापनी है ८ श्रव कर्मका श्रावणानी जीव है ए कर्म आवनेके रोकऐका उपाय संबरनी है १० करे कर्मका वेदना जोगना
है ११ कर्मकी निर्जरानी है कर्म फल देके खिरजाते है १२ अरिहंतनी है १३ चक्रवर्तीनी है १४ बलदेव बासुदेवजी है १५ नरकनी है १६ नारकीमी १७ तिर्यंचनी है १८ तिर्यचणीनी है १७ माता पिता रुषीनी है २० देवता और देवलोकनी है २१ सिद्धि स्थानजी है २२ सिनी २३
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