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करे, अंतमे देवता थकके श्री महावीरजीका सेवक बना शांत हुआ. चंम कौशिक सर्पने मंक मारा परं नगवंततो मरा नही, सर्प प्रतिबोध हूआ. सुदंष्ठ नाग कुमार देवताका उपसर्ग संबल कंबल देवतायोंने निवारा, नगवंततो कायो. त्सर्गमें खमेथे. लोकोंने बनमे अग्नि बालो लोक तो चले गये पोडे अग्नि सूके घासादिको बालती हू नगवंतके पगों हेठ आ गइ, तिस्ते नगवंत के पग दग्ध हूए परं नगवंतने तो कायोत्सर्ग डोमा नही. तहांही खमे रहे. कटपूतना देवीने माघमासके दिनों में सारी रात नगवंतके शरीरकों अत्यत शोतल जल गंटा, नगवंततो चलायमान नही हुए. अंतमे देवी थकके जगवंतकी स्तुति करने लगी. संगम देवताने एक रात्रिमें वीस नपसर्ग करे वे एसेहै नगवंतके उपर धूलिकी वर्षा करी जिस्से नगवंतके आंख कानादि श्रोत बंद होनेसे स्वासोत्साससे रहित हो गये तोनी ध्यानसे नही चले १ पीछे बजमुखी कोमीयों बनाके नगवंतका शरीर चालनिवत् सबि करा २ बज
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