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विष्यत्, वर्त्तमानकालको वस्तु सूक्ष्म बादर रूपी अरूपी व्यवध्यान रहित व्यवधान सहित दूर नेमे अंदर बाहिर सर्व वस्तुकों जाने, देखेहै; इस झानके जेद नही है. इन पांचो ज्ञानोका विशेष स्वरूप देखना होवेतो नंदिसूत्र मलयगिरि वृत्ति सहित वांचना वा सुन लेना,
प्र. ४२ - श्रीमहावीरस्वामी अनगार हो कर जब चलने लगेथे तब तिनके नाइ राजा नंदिवर्द्धनने जो विलाप कराया तो थोमासा श्लोकोमें कद दिखलावो.
न. - त्वया विना वीर कथं व्रजामो ॥ गृदेधुना शून्य वनोपमाने || गोष्टी सुखं केन सहाचरामो । नोक्ष्यामहे केन सहाथ बंधो ॥ १ ॥ अस्यार्थः ॥ हे वीर तेरे एकलेको बोमके हम सूने बन समान अपने घर में तेरे विना क्युंकर जावेंगे, अर्थात् तेरे विना हमारे राजमहिलमे हमारा मन जानेको नही करता है, तथा दे बंधव तेरें विना एकांत बेठके अपने सुख दुखको बातां क रन रूप गोष्टी किसके साथ मैं करूंगा तथा दे
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