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प्र. ३०-मनःपर्यवज्ञान नगवंतकों गृह स्थावस्थामें क्युं न हुआ.
उ.-मनःपर्यवज्ञान निग्रंथ संयमीकोंही होताहै अन्यको नही.
प्र. ३ए-ज्ञान कितने प्रकारकेहै. न.-पांच प्रकारके शानहै. प्र.४०-तिन पांचो ज्ञानके नाम क्या क्याहै.
न.-मतिज्ञान १ श्रुतिज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनःपर्यवज्ञान । केवलज्ञान ५
प्र. ४१-इन पांचो ज्ञानोंका थोमासा स्वरूप कहो.
न.-मतिज्ञान विनाही सुनेके जो ज्ञान होवे तथा चार प्रकारकी जो बुद्धिहै सो मतिज्ञानहै. इसके ३३६ तीनसौ उत्तीस नेदहै. जो कहने सुननेमे आवे सो श्रुतिज्ञान है; तिसके १४ चौदह नेदहै. अवधिज्ञान सर्व रूपी घस्तुकों जाने देखे; तिसके ६ नेद है. मनःपर्यवज्ञान अ. ढाइहीपके अंदर सर्वके मन चिंतित अर्थको जाने देखे. तिसके दोय दहै. केवलज्ञान नूत, न.
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