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बंधव तेरे विना मैं किसके साथ बैठके भोजन जीमुगा; क्योंके तेरे विना अन्य कोई मेरा त्रिशलाका जया जाइ नही है १ सर्वेषु कार्येषु च वीर वीरे ॥ त्यामंत्रणदर्शनतस्तवार्य ॥ प्रेमप्रक र्षादनजामहर्ष निराश्रया श्चायकमाश्रयामः ॥२॥ अर्थ || हे आर्य उत्तम सर्व कार्यके विषे वीर वीर ऐसे हम तेरेकों बुलाते थे और हे श्रार्य तेरे देखनेसे दम बहुत प्रेमसें दर्षकों प्राप्त होते थे; अब दम निराश्रय होगये है, सो किसकों श्राश्रित होवे, अर्थात् तेरे विना हम किसकों हे वीर दे वीर कहेंगे, और देखके हर्षित होवेगे ॥ २॥ अति प्रियं बांधव दर्शनं ते । सुधांजनं नाविक दास्म दक्ष्णोः नीरागचित्तोपिकदाचिदस्मान् ॥ स्मरिष्यसि प्रौढ गुणाभिराम ॥ ३ ॥ प्रस्यार्थः ॥ दे बांधव तेरा दर्शन मेरेकों अधिक प्रिय है, सो तुमारे दर्शन रूप अमृतांजन हमारी आंखो में फेर कद पगा. हे महा गुणवान् वीर तूं निराग चित्तवाला है तो कक हम प्रिय बंधवांकों स्मरण करेंगा ३ इत्यादि विलाप करेथे.
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