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वी. इ. वाल्युम (पुस्तक) २२ पत्रे श्ए, हमकों मालम होताहैकि सुठिय वा सुस्थित नामे आ. चार्य श्री महावोरके आग्मे पट्टके अधिकारीने कौटिक नामे गण (गब) स्थापन कराया, तिसके विन्नाग रूप चार शाखा तथा चार कुल हूए, जि सकी तीसरी शाखा वश्रोथी और तोसरा वाणि ज नामे कुलथा, यह प्रगट हैकि गण कुल तथा शाखाके नाम मथुरांके लेखोंमें जो लिखेहै वे क स्पसूत्रके साथ मिलते आतेहै. कोटियकुबक को मोयका पुराना रूपहै, परंतु इस बातकी नकल लेनी रसिकहैकि वश्री शाखा सीरीकानत्ती (स्त्री कानक्ति) जो नंबर ६ के लेखमें लिखी हुश्है ति सके नाम का कल्पसूत्रके जानने में नहीं था, अर्थात् जब कल्पसूत्र हुआथा तिस समयमें सो नाग नही था. यह खाली स्थान ऐसाहैकि जो मुहकी दंत कथा (परंपरायसें चला पाया कथन) से लिखीहू यादगीरीसें मालुम होताहै. इति मा क्तर बूलर ॥
अथ चौथा लेख ॥ संवत्सरे ए व........
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