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२०१ स्य कुटुबनि, वदानस्य वोधुय....क....गणता ....वहुकतो, कालातो, मसमातो, शाखाता.... सनिकाय नतिगालाए थवानि....सिह-स ५ हे १ दि १०+२ अस्य पूर्वा येकोटो....इस लेखकी लीनी हुई नकल मेरे वसमे नहींहै, इस वास्ते इसका पूर्ण रूप मै स्थापन नहीं कर सकताहूं, परंतु पंक्तिके एक टुकमेके देखनेसें ऐसा अनुमान हो सकताहैके यह अर्पण करनेका काम एक स्त्रीसें हूआथा, ते स्त्री एक पुरुषको वहु (कुटुंबनो) तरी के और दूसरेके बेटेकी बहु (वधु) तरीके लिखने में आयो॥ दूसरी पंक्तिका प्रथम सुधारे साथ लेख नीचे लिखे मूजब होताहै ॥ कोटोयतो गण तो (प्रश्न) वाहनकतो कुलतो मऊमातो साखातो....सनीकायेके समाजमें कोटोय गछके प्रश्न वाहनकी मध्यम शाखामेंके कोटीय और प्रश्नवा हनकये दो नाम होवेंगे, ऐसें मुझकों निसंदेह मालुम होताहै, क्योंकि इस लेखकी खाली जगा तिस पूर्वोक्त शब्द लिखनेसे बराबर पूरी होजाती है, और दूसरा कारण यहहै कि कल्पसूत्र एस.
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