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कर्मके उदयसें जीव त्रसपणा बोकी स्थावर पृथ्वी, पानी, वनस्पत्यादिकका जीव हो जावे, हली चली न सके, सो स्थावर नामकर्म ८४ जिस कर्मके उदयसे सूक्ष्म शरीर जीव पावे, सो सूक्ष्म नामकर्म ८५ जिस कर्मके नदयसे प्रारंभी हुइ पर्याप्ति पूरी न कर सके, सो अपर्याप्त नामकर्म. ८६ जिस कर्मके उदयसें अनंते जीव एक शरोर पामे, सो साधारण नामकर्म ८७ जिस कर्मके नदयसें जीवके शरीर में लोहु फिरे, हामादि सिथल होवे, सो अथिर नामकर्म ८८ जिस कर्मके उदयसें नानीसें नीचेका अंग उपांगादि पावे, सो अशुभ नामकर्म ८० जिस कर्मके उदयसें जीव अपराधके विना करेही बुरा लगे, सो दौर्भाग्य नामकर्म ए० जिस कर्मके नदयसें जीवका स्वर मार्जार, ऊंट सरीखा होवे, सो दुःस्वर नामकर्म ९१ जिस कर्मके उदयसें जीवका वचन अज्ञानी होवे, तोनी लोक न माने सो अनादेय नामकर्म ९२ जिस कर्मके उदयसें जीवका अपयश की र्त्ति होवे, सो अपयश कीर्त्ति नामकर्म, ३ इति
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