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१०५ शरीर पावे, सो बादर नामकर्म ७५ जिस कर्मके नदयसै जीव प्रारंन करी हुन ६ पर्याप्ति अ.
र्थात् आहार पर्याप्ति १ शरीर पर्याप्ति २ इंघिय पर्याप्ति ३ सासोत्स्वास पर्याप्ति ४ नाषा पर्याप्ति ५ मनः पर्याप्ति ६ पूरी। करे, सो पर्याप्त नामकर्म ७६ जिसके नदयसे एक जीव एकही नदारिक शरीर पावे, सो प्रत्येक नामकर्म ७७ जिस कर्मके नदयसे जीवके हाम दातादि दृढ बंध होवे, सो थिर नामकर्म ७० जिस कर्मके नदयसें नानिसें ऊपल्या नाग शरीरका पावे, दूसरेके तिस अंगका स्पर्श होवें तोनी बुरा न माने, सो शुन्न नामकर्म ७५ जिस कर्मके नदयसे विना नपका रके कस्यांनी तथा सबंध विना बल्लन लागे, सो सौनाग्य नामकर्म ८० जिस कर्मके नदयसे जी वका कोकलादि समान मधुर स्वर होवे, सो सुस्वर नामकर्म ८१ जिस कर्मके उदयसे जीवका वचन सर्वत्र माननीय होवे, सो आदेय नामकर्म ८२ जिस कर्मके नदयसे जगतमें जीवकी यशकीर्ति फैले, सो यश कीर्ति नामकर्म ८३ जिस
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