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नामकर्म.६. ____ अथ नामकर्म बंध हेतु लिखते है ॥ देव गत्यादि तीस ३० शुन्न नामकर्मकी प्रकृतिका बंधक कौन होवे सो लिखते है. सरल कपट रहित होवे जैसी मनमें होवे तैसोही कायकी प्रवृत्ति होवे. किसीकोनी अधिक न्यून तोला, मापा क रके न ठगे, परवंचन बुद्धि रहित होवे, झझिगार व, रसगारव, सातागारव, करके रहित होवे, पाप करता हुआ मरे, परोपकारी सर्व जन प्रिय क्षमा दि गुण युक्त ऐसा जीव शुन्न नामकर्म बांधे तथा अप्रमत्त यतिपणे चारित्रियो आहारकछिक बांधे, १ और अरिहंतादि वीश स्थानककों सेवता हुआ तीर्थकर नामकर्मकी प्रकृति बांधे । और इन पू. र्वोक्त कामोसे विपरीत करे अर्थात् बहुत कपटी होवे, कूमा, तोला, मान, मापा करके परकों ठगे, परोही, हिंसा, जूठ, चौरी, मैथुन, परिग्रहमें त त्पर होवे, चैत्य अर्थात् जिनमंदिरादिककी विरा धना करे, व्रतलेकर नम करे, तीनो गौरवमें मत्त होवे, हीनाचारी ऐसा जीव नरक गत्यादि अशु
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