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नेसे कामण मोहन टूणा वगेरे करे, कुतुहल करे तो रति मोहनीय कर्म बांधे २. राज्य नेद करे, नवीन राजा स्थापन करे, परस्पर लगा करावे, दूसरायोंको अरति नच्चाट नत्पन्न करे, अशुन्न काम करने करानेमें नत्साह करे, और शुन्न का. मके नत्साहकों नांजे, निष्कारण आध्यान करे तो अरति मोहनीय कर्म बांधे ३. परजीवांकों त्रास देवे तो, निर्दय परिणामी जय मोहनीय कर्म बांधे ४. परकों शोक चिंता संताप नपजावे, तपावे तो शोक मोहनीय कर्म बांधे ५. धर्मी साधु जनोकी निंदा करे, साधुका मलमलीन गात्र देखि निंदा करे तो जुगुप्सा मोहनीय कर्म बांधे ६. शब्द रूप, रस, गंध, स्पर्शरूप, मनगती विषयमें अत्यंताशक्त होवे, दूसरेकी वर्षा करे, माया मृषा सेवे, कुटिल परिणामी होवे, पर स्त्रीसे लोग करे तो जीव स्त्रोवेद मोहनीय कर्म बांधे ७. सरल होवे, अपनी स्त्रीसे ऊपरांत संतोषी होवे, इर्षा रहित मंद कषायवाला जोव पुरुषवेद बांधे तीव्र कषायवाला, दर्शनी दूसरे मतवालोंका शोल
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