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१६६ की श्रुनज्ञानको निंदा अवज्ञा होलना करता हुआ, और जिन शासनका नड्डाह करता हुआ अयश करता कराता हुआ निकाचित महा मिथ्यात्व मोहनीय कर्म बांधे. इति दर्शन मोहनीयके बंध हेतु. ॥ अथ चारित्रमोहनीय कर्मके बंध हेतु लि खते है. चारित्र मोहनीय कर्म दो प्रकारका है, कषाय चारित्र मोहनीय १. नोकषाय चारित्र मो हनीय २. तिनमेंसे कषाय चारित्र मोहनीयके १६ सोलां नेदहे, तिनके बंध हेतु लिखते है. अनंता. नुबंधी क्रोध, मान, माया, लोनमे प्रवर्ने तो सो. लाही प्रकारका कषाय मोहनीय कर्म बांधे. अप्रत्याख्यानमे वर्ते तो ऊपल्या बारां कषाय बांधे. प्रत्याख्यानमें प्रवर्ते तो ऊपख्या आठ कषाय बांधे, संज्वलनमें प्रवनें तो चार संज्वलनका कषाय बांधे. इति कषाय चारित्र मोहनोयके बंध हेतु. नोकषाय हास्यादि तिनके बंध हेतु यह है, प्रथम हास्य हांसी करे, नांझ कुचेष्टा करे, वहुत बोले तो हास्य मोहनीय कर्म बांधे १ देश देखनेके र. ससे, विचित्र क्रीमाके रससे, अति वाचाल हो.
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