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नंग करे, तीव्र विषयी होवे, पशुकी घात करे, मिथ्यादृष्टी जीव नपुंसकवेद बांधे ए. संयमीके दूषण दिखावे, असाधुके गुण बोले, कषायको न. दीरणा करता हुआ जीव चारित्र मोहनीय कर्म समुच्चय बांधे. इति मोहनीय कर्म बंध हेतु. यह मोहनोय कर्म मदिरेके नशेकी तरें अपने स्वरूपसें भ्रष्ट कर देताहै. इति मोहनीय कर्मका स्वरूप संक्षेप मात्रसे पुरा हुआ ४.
अथ पांचमा आयुकर्म, तिसकी चार प्रकति जिनके नदयसे नरक १ तिर्यंच २ मनुष्य ३ देव ४ नवमें बचा हुआ जीव जावे है, जैसें चमकपाषाण लोहको आकर्षण करता है, तिसका नाम आयुकर्म. नरकायु १ तिर्यंचायु २ मनुष्या यु ३ देवायु ४ प्रथम नरकायुके बंध हेतु कहतेहै. महारंन चक्रवर्ती प्रमुखकी शदिनोगनेमें महा मूळ परिग्रह सहित, व्रत रहित अनंतानुबंधी कषायोदयवान् पंचेंश्यि जीवको हिंसा निशंक होकर करे, मदिरा पोवे, मांस खावे, चौरी करे, जूया खेले, परस्त्री और वेस्या गमन करे, शिकार
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