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मान पत्रके स्तंन समान किंचित् मात्रनी न नमे, माया कग्नि वांसकी जम समान सूधो न होवे, लोन कृमिके रंग समान फेर उतरे नही. यै चारों जिसके उदयमें होवे सो जीव मरके नरकमें जाता है; और इस कषायके नदयमें जीवांकों सच्चे देवगुरु धर्मकी श्र रूप सम्यक्त नही होता है; ४ दूसरा अप्रत्याख्यान कषाय तिसकी स्थिति एक वर्षकी है. एक वर्ष तक कोध मान माया लोन रहै तिनमें क्रोधका स्वरूप पृथ्वीके रेखा फाटने समान बझे यतनसे मिले, मान हामके स्तंने समान मुसकलसें नमे, माया मिंढेके सींगके बल समान सिधा कठनतासे होवे; लोन नगरकी मोरीके कीचमके दाग समान, इस क. षायके नदयसे देश व्रतीपणा न आवे और मरके पशु तीर्यचकी गतिमें जावे तीसरी प्रत्याख्या नावरण कषाय तिसकी स्थिति चार मासकी है. क्रोध वालुको रेखा समान, मान काष्टके स्तंन्ने समान, माया बैलके मूत्र समान वांकी, लोन गामीके खंजन समान, इसके उदयसे शुध साधु
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