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रूप नेद करते है, बौद्ध लोक वासना कहते है, विना समझके लोक इन कर्माको ईश्वरकी लीला कुदरत कहतेहै, परंतु कोइ मतवाला इन कर्माका यथार्थ स्वरूप नही जानता है, क्योंकि इनके मतमें कोई सर्वज्ञ नही हुआ है, जो यथार्थ क. मौका स्वरूप कथन करे; इस वास्ते लोक भ्रम अज्ञानके वश होकर अनेक मनमानी ऊतपटंग जगत कादिककी कल्पना करके, अंधाधुंध पंथ चलाये जातेहै, इस वास्ते नव्य जीवांके जानने वास्ते आठ कर्मका किंचित् स्वरूप लिखते है. ज्ञानावरणीय १ दर्शनावरणीय श् वेदनीय ३ मोहनीय ४ आयु ५ नाम ६ गोत्र ७ अंतराय ७ इनमेसें प्रथम ज्ञानावरणीयके पांच नेदहै; मति ज्ञानावरणीय १ श्रुतज्ञानावरणीय श् अवधिज्ञानावरणीय ३ मनःपर्यायज्ञानावरणीय ४ केवलज्ञानावरणीय ५. तहां पांच इंख्यि और उहा मन इन ग्रहों द्वारा जो ज्ञान नत्पन्न होवे, तिसका नाम मतिज्ञान है. तिस मतिज्ञानके तोनसौ बतीस ३३६ नेदहै. वे सर्व कर्मग्रंथकी वृत्निसें जा
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