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१५२ तिसका स्वरूप लिखते है.
जैसें तेलादिसे शरीर चोपमीने कोई पुरुष नगरमें फिरे, तब तिसके शरीर ऊपर सूक्ष्म रज पमनेसे तेलादिके संयोगसें परिणामांतर होके मल रूप होके शरीरसें चिप जाती है, तैसेही जी वांके जीवहिंसा १ जुठ ३ चोरी ३ मैथुन ४ प. रिग्रह ५ क्रोध ६ मान ७ माया 6 लोन ए राग १० द्वेष ११ कलह १२ अन्याख्यान १३ पैशुन १५ परपरिवाद १५ रतिअरति १६ मायामृषा१७ मिथ्यादर्शन शल्य १० रूप जो अंतःकरणके प रिणाम है. वे तेलादि चीकास समान है, तिनमें जो पुजल जमरूप मिलताहै, तिसकों वासना रूप सूक्ष्म कारमण शरीर कहतेहै; यह शरीर जीवके साथ प्रवाहसे अनादि संयोग सबंधवाला है; इस शारीरमें असंख तरेंकी पाप पुण्य रूप कर्म प्रकृति समा रही है. इस शरीरको जैनमतमें कर्म कर्म कहते है. और सांख्यमतवाले प्रकृति, और वेदांति माया, और नैयायिक वैशेषिक अदृष्ट क हते. कोश्क मतवाले क्रियमाण संचित प्रारब्ध
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