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१४॥ तथा बीज स्वयं अपने नारोपणे करके पृथ्वीमें न पमेतो कदापि अंकुर नत्पन्न न होवे; इस वा स्ते बीजाकुंरकी नत्पत्तिमें पांच कारणहै. काल? स्वन्नाव २ नियति ३ पूर्वकर्म ४ नद्यम ५ श्न पांचोके सिवाय अन्य कोई अंकुर नत्पन्न करने वाला कोई ईश्वर नही सिद्ध होताहै, तथा मनुष्य गर्नमें नत्पन्न होताहै तहांनी पांच कारणसेही होताह, गर्न धारणके कालमेंही गर्न रहै १, गर्न की जगाका स्वन्नाव गर्न धारणका होवे तोही गर्न धारण करे २, गर्नका तथा तथा निर्विघ्नपनेसे होना नियतिसेंहै ३, जीवोंने पूर्व जन्ममें मनुष्य होनेके कर्म करेहै तोही मनुष्यपणे नत्प न होतेहै, ४ माता पिता और कर्मसे आकर्षण न होवेतो कदापि गर्न नत्पन्न न होवे, ५ इसीतरे जो वस्तु जगतमें नत्पन्न होतीहै सो श्नही पांचो निमित्त कारणोंसे और नपादान कारणोस होती है, और पृथ्वी प्रवाहसे सदा रहेगी और पर्याय रूप करके तो सदा नाश और उत्पन्न होती रही है; क्योंकि सदा असंख जीव पृथ्वीपणेहो नत्पन्न
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