________________
१०३
मानना १७, जब तक जीव येह अष्ठादश पाप सेवन करताहै, तब तक इसको पुनर्जन्म होताहै.
प्र. १७-जीवकों पुनर्जन्म बंद दोनेका क्या रस्ताहै ?
न. ऊपर लिखे हुए अष्टादश पापका त्याग करे, और पूर्व जन्मांतरोमें इन अष्टादश पापोंके सेवनेसे जो कर्माका बंध कराहै, तिसको अर्ह. तकी आज्ञानुसार ज्ञान श्रद्धा जप तप करनेसें सर्वथा नाश करे तो फेर पुनर्जन्म नही होताहै.
प्र. १०0-तीर्थकर महाराजके प्रन्नावसे अ. पना कल्याण होवेगा, के अपनी आत्माके गुणाके प्रन्नावसे हमारा कल्याण होवेगा ?
न.-अपनी आत्माका निज स्वरूप केवल झान दर्शनादि जब प्रगट होवेगे, तिसके प्रत्नावसे हमारी तुमारी मोद होवेगी.
प्र. ११०-जेकर निज आत्माके गुणोंसेमोह होवेगी, तबतो तीर्थंकर नगवंतकी नक्ति करनेका क्या प्रयोजन है ? ___ न.-तीर्थंकर नगवंतकी नक्ति करने में ती
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com