SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान। पैशून्यहासगर्भ कर्कशमसमञ्जसं प्रलपितं च । अन्यदपि यदुत्सूत्र तत्सर्व गहितं गदितम् ।। ९६ ॥ भावार्थ-जो वचन चुगलीरूप हो, हास्यरूप हो, कर्कश हो, नुक्ति सहित न हो, बकवादरूप हो या शास्त्र विरुद्ध कोई भी वचन हो उसे गर्हित कहा गया है। छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौर्यवचनादि । तत्सावधे यस्मात्प्राणिवधायाः प्रवर्तन्ते ॥ ९७ ॥ भावार्थ-जो वचन छेदन, भेदन, मारन, खींचनेकी तरफ या व्यापारकी तरफ या चोरी आदिकी तरफ प्रेरणा करनेवाले हों वे सब सावद्य वचन हैं, क्योंकि इनसे प्राणियोंको वध मादि कष्ट पहुंचता है। मरतिकर भीतिकरं खेदकर वैरशोककलहकरम् । यदपरमपि तापकरं पास्य तत्सर्वमप्रिय ज्ञेयम् ॥ ९८॥ भावार्थ-जो वचन भरति, भय, खेद, वैर, शोक, कलह पैषा करे व ऐसे कोई भी वचन जो मनमें ताप या दुःख उत्पन्न करे वह सर्व अप्रिय वचन जानना चाहिये । मवितीणस्य ग्रहणं परिग्रहस्य प्रमत्तयोगाद्यत् । तत्प्रत्येय स्तेयं सैव च हिंसा वधस्य हेतुत्वात् ॥ १०२ ।। भावार्थ-कषाय सहित मन, वचन, कायके द्वारा जो विना दी हुई वस्तुका ले लेना सो चोरी जानना चाहिये, यही हिंसा है। क्योंकि इससे प्राणोंको कष्ट पहुंचाना है । यद्वेदरागयोगान्मैथुनमभिधीयते तदब्रह्म । अवतरति तत्र हिंसा वधस्य सर्वत्र सद्भावात् ॥ १७ ॥ भावार्थ-जो कामभावके राग सहित मन, वचन, कायके द्वारा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034856
Book TitleJain Bauddh Tattvagyan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1940
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy