SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२) - निभीदूरसंबंध होने सहजनासे हो सकनीदैनिकट बिबाह होनेमेनहीं इसलिये | दुरिनादुर्हितादूरेहिनाभवतीतिनिरु.। कन्याकानाम दुहिता इसकारणसेहैकि इसकाबि याह दूरदेशमें होनेसे हितकारी होतीहैनिकटकानेमनहीं मानवेंकन्याकिपिट कुलमेंदारिद्र होने काभीसं भवहै कयाकिजबजबकन्यापिटकुलमें मावेगीतब नब इसको कुछ नकछदेनाहीहोगा .. (e) प्राठवेंकोई निकट होनेसे एक दूसरे को अपने अपने पितृ कुलके सहायका घमण्ड और जब कभी दोनोमैं वैमनस्यहोगास्त्री करही पिताके कुलमेंचलीजायगी एक दूसरेकी निन्दा-अधिक होगी और विरोधभीक्योकिप्राय:स्त्रियका स्वभाव तीक्ष्ण भोरमृददाताहै इत्यादिकारगसे पिता कि एक गोत्रमानाकी छापीटीओरसमीपदेशमें विवाहकरनापच्छानहीं महान्यपिसमृहानिगोऽजाविधनधान्यनः | स्वीसंबन्धेदशेनानिकुलानिपरिवर्जयेत चाहेकिननेहीधन धान्य गाय मजा हाथों घोड़े राजश्रीआदिसेसमृद्धियेकल होतोभीविवाहसे बन्धमें निम्नलिवनदशकुलोकान्यागकरदे॥१॥ - - D A .. . %3D -- - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034854
Book TitleJain Aur Bauddh ka Bhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi, Raja Sivaprasad
PublisherNavalkishor Munshi
Publication Year1897
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy