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हिंगनघाट, कर्जत, बार्शी, कुल्पाक, सिकन्द्राबाद, कर्नल, करमाला, रायचर, सिरुगुप्पा, कडप्पा, पाचोरा। धर्मशाला व उपाश्रय :सोलापूर, कर्नूल. आदि स्थानो में शासन प्रभावना के कार्य करते-करते अपने विशाल परिवार सह मद्रास के उपनगरों में जिनेन्द्रदेवकी अमृतवाणी का पान कराते हुए सैदापेट, मांबलम में पधारे, तब सुश्रावकों ने संघ पूजा का लाभ लिया, स्थले स्थले बैंड-बाजों साथ संघ द्वारा भव्य स्वागत होते रहे।
शहर में चातुर्मासार्थ प्रवेश:
संघ, जिनके स्वागत की तैयारी के लिये उत्सुक था, उन गुरुदेव का आसाढ सुव २ के दिन मंगल मुहूर्त के साथ शहर में भव्य प्रवेश हआ। संघ के भाई-बहिन विभिन्न प्रकार की पोशाक परिधान कर हर्ष के सागर में तल्लीन बनके सुलै की तरफ उनके भव्य दर्शनार्थ जा रहे थे। सुलै से स्वागत-यात्रा बैंड-बाजो, वाजित्रों के साथ, देव-गुरु की स्तुति और जैन-शासन की जय-जयकार के गंजते नारों के साथ शुरु हुई। जब गुरुदेव एलिफेंट गेट के पास आये, तब मद्रास संघ उनके सन्मुख सामैया के साथ आये। सामैया में प्रथम निशान डंका, शासन ध्वज लेकर चलते भाई लोग गजराज, आर. पि. बैंड, श्री चन्द्रप्रभु महिला मंडल, श्री पार्श्व जिन महिला मंडल, श्री जिनदत्तसूरि जैन मंडल, मित्र मंडल, युवक मन्डल, बाल मन्डल, श्री जैन मिशन धार्मिक पाठशाला,श्री जैन मिशन संगीत मंडली,श्री पावं जिन युवक मन्डल, अपनी-२ सुंदर सजाई हुई बैल गाडियों, ट्रंकों में दांडियारास, और नत्य आदि करते-२ गुरु गीत गाते-२ वातावरण को भक्ति से (मुखरिते) गूंजा रहे थे। इसके पीछे श्री चन्द्रप्रभ जैन मण्डल का बड़ बज रहा था। उनके पीछे आचार्य आदि मुनि मन्डल और विशाल जन-समूह बाद में आर्यागण और सैंकडो श्राविकाएं.
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