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‘य एवं विद्वान् प्राणं वेद ॥ न हास्य प्रजा हीयतेऽमृतो भवति तदष श्लोकः ॥ ११ ॥ उत्पत्तिमायतिं स्थानं विभुत्वं चैव पञ्चधा'।
अध्यात्मं चैव प्राणस्य विज्ञायामृतमश्नुते विज्ञायामृतमश्नुत इति' ॥१२॥ इति तृतीयः प्रश्नः ( प्रश्नोपनिषत् )
अर्थात् प्राण, सूर्य और उसके ज्ञान-विज्ञान का समर्थन दो चार श्रुतिवचन करते हो सो बात नहीं, किन्तु समग्र वैदिक साहित्य ही उसका भिन्न २ स्वरूप या दृष्टि से समर्थन, प्रशंसा अथवा स्तुति फल गुणगान से भरा पड़ा है। विश्वविश्रुत गायत्रीमंत्र-वेदमाता का बिरद जिसे प्राप्त है, वह उसीका अप्रतिम प्रतीक है । अस्तु,
अबतक उपर्युक्त रीत्या प्राण या सूर्य-विज्ञान के संबन्ध में जो विशद विवेचन किया गया है, वह प्रस्तुत संकलन में विवर्णित उसी विषय की बहुमूल्यता और उपादेयता ठीक २ साधक को समझने में सहायभूत हो, इसीलिए है।
'ज्ञान-स्वरोदय ' और एतद्-विषयक जो इतर ग्रंथ-रत्न इस संकलन में प्रस्तुत किये गये हैं, उन सभी ग्रंथों में एक या दूसरे रूप से स्वर-विज्ञान की ही अति महत्त्वपूर्ण विशद चर्चा की गई है।
संत-साहित्य और लोकहित की दृष्टि से प्राण-विज्ञान की चचा बहुमूल्य और अनुपम है । प्राण-विज्ञान को जानकर हरएक
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