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सबके सब सूर्यदेव पर ही अवस्थित हैं। वैसे ही अन्तर्जगत् के निखिल कर्म व्यापार प्राण पर ही आश्रित हैं। अर्थात् बाह्य जगत् में एकमात्र सूर्य, और शरीरजगत् में केवल प्राण ही ज्येष्ठ, श्रेष्ठ और केन्द्र याने सभी कुछ है। श्रति
'यो ह वै ज्येष्ठं च श्रेष्ठं च वेद जेष्ठश्च ह वै श्रेष्ठश्च भवति प्राणो वाव ज्येष्ठश्च श्रेष्ठश्च ॥'
(छान्दोग्योपनिषत् ) प्राण ज्येष्ठ और श्रेष्ठ है, इतना ही नहीं; अपितु प्राण ही सब कुछ है । श्रुति__ 'प्राणो वा आशा या भूयान्यथा वा अरा नाभौ समर्पिता एवमस्मिन् प्राणे सर्व समर्पितं प्राणः प्राणेन याति प्राणः प्राणं ददाति प्राणाय ददाति प्राणो ह पिता प्राणो माता प्राणो भ्राता प्राणः स्वसा प्राण आचार्यः प्राणो ब्राह्मणः' ॥१॥ ....'प्राणो ह्येवैतानि सर्वाणि भवति ।
(छान्दोग्योपनिषत् ) एवं बाह्यान्तर्जगत् के जीवन-स्रोत सूर्य और प्राण ही हैं । यह निर्विवाद सिद्ध है। अतएव प्राण और सूर्य के तानेबाने से ही अखिल विश्व का स्थूल सूक्ष्म कर्म-व्यापार, और ज्ञान-विज्ञान आदि अनुस्यूत, ओत-प्रोत होकर सम्यक् रूप से संचालित हो रहे हैं । ऐसा ज्ञान जिस विद्वान् पुरुष को प्राप्त हो जाता है, वह अमर बन जाता है। श्रति
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