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॥ सत्यनाम ॥
प्रस्तावना
आध्यात्मिक विज्ञान-जगत् में ' स्वरोदय ' विज्ञान का भी अपनी मौलिक विशेषताओं के कारण अनोखा स्थान है।
स्वरोदय-विज्ञान याने प्राण-विज्ञान । और प्राण तो जगत्जीवों का मुख्य जीवन-स्रोत है ही अर्थात् प्राण पर ही प्राणिमात्र का जीवन-क्रम, उत्पत्ति, स्थिति और लयादि का होना निर्भर है। श्रति
'प्राणं देवा अनुप्राणन्ति ॥ मनुष्याः पशवश्च ये ॥ प्राणो हि भूतानामायुः । तस्मात्सर्वायुषमुच्यते ॥'
( तैत्तिरीयोपनिषत् ) अन्तर्जगत्-शरीर में जिसको प्राण कहा जाता है, उसीको बाह्य जगत् में सूर्य कहते हैं, और प्राण जैसे शरीर-जगत् का जीवनकेन्द्र है, वैसेही सूर्य बाह्य जगत् का जीवन-स्रोत है। श्रति
'सूर्यश्च आत्मा जगतश्च तस्थुः ॥'
इससे यह निष्पन्न हुआ कि, प्राण और सूर्य एक ही है। पर, स्थानभेद और उपाधिभेद के कारण ही उसके स्वरूप और नाम के भेद है । सौर जगत् के समग्र कर्म-व्यापार, ज्ञान-विज्ञान, शीत-आतप, वर्षादि ऋतु, उत्पत्ति, स्थिति, संहारादि जितने मी सजीव-निर्जीव पदार्थों का परिवर्तन और जीवन-व्यापार हैं, वे
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