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वगैरह खंतपूर्वक किये हैं। ऐसे ही कार्य करने की शक्ति सद्गुरु उन्हें प्रदान करें।
आशा है, सद्गुरु के ज्ञानपिपासु प्रेमी सजन, इन ग्रंथों को अपना कर हमारे उत्साह को बढावेंगे । सारभूत कुछ दोहे देकर हम इस वक्तव्य को पूरा करते हैं :
सतगुरु सत्य कबीर हैं, सब पीरन के पीर । शरण गहै, हंस हि बनै, पहुँचे भव जल तीर ॥ जो चाहो निज मुक्ति को, गहो स्वरोदय ज्ञान । श्वासा में साहिब मिले, समझो ज्ञान सुजान । सतगुरु का आदेश यह, समझि बूझि गहि लेव । पावै निज 'चैतन्य' को, श्वासा में निज मेव ॥
"कहता हूं कहि जात हूं. काह बजावू ढोल । श्वासा खाली जात है, तीन लोक का मोल ॥
मुझे कहां ढूंढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, मैं श्वासों के श्वास मै"॥ सूचना :- 'साखी ग्रंथ ' की दूसरी आवृत्ति छप रही है। रजिस्टर में नाम दर्ज
करावें ताकि तैयार होतेही मिल जावें ।
ज्येष्ठ पूनम । १.-६-४९ ।
प्रकाशक, महंत श्री बालकदासजी साहेब
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