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सत्यनाम
वक्तव्य
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सद्गुरु की दया से आज हम सुज्ञ प्रेमी ग्राहकों के हस्त में " कबीर धर्मवर्धक कार्यालय" का पाँचवा ग्रंथ " ज्ञान स्वरोदय" दे रहे हैं। ग्रंथ कैसा और कितना उपयोगी है यह हम नहीं कह सकते, क्यों कि “जाको ज पा गुरु मिला, ताको तैसी सूझ" सद्गुरु के इस वचनानुसार जिसको जैसी समझ बूझ होगी व उसी दृष्टि से ग्रंथ को देखेंगे, विचारेंगे और लाभ उठावेंगे । और यह ग्रंथ स्वरज्ञान के साथ साथ आत्म-दर्शन तथा आत्मज्ञान के सरल, शुभ और अपूर्व सहज मार्ग का प्रदर्शन करता है। इसलिये प्रत्येक आत्मज्ञानपिपासु का कर्तव्य है कि अवश्य लाभ उठावें ।
ग्रंथ को शुद्ध सुंदर और अच्छे चिकने कागज पर छपाने में यथाशक्ति पूग यत्न किया गया है । कुछ काना मात्रादि की भूल हो तो सुधार लेवें ऐसी नम्र प्रार्थना है। ___ " पवन स्वरोदय, तत्त्र स्वरोदय, दुर्लभ योग, वड़ा संतोष बोध तथा गर्भावली " ये ग्रंथ भी उपरोक्त विषय के ही हैं। इनको भी इस ग्रंथ में दे दिये गये हैं। ये ग्रंथ कैसे जीवनोपयोगी और ज्ञानपूर्ण हैं, यह तो केवल पढ़ने विचारने से मालूम हो सकता है । __ आनंद की बात तो यह है कि कबीर साहित्य के गूढार्थ के ज्ञाता स्वामी श्री महन्त साहेब श्री बालकृष्ण सजी साहेबने विद्वत्त पूर्ण सारगर्भित भावपूर्ण प्रस्तावना लिख दी है । इस लिए कबीर धर्मवर्धक कार्यालय उनका ऋणी है।
कबीर पंथ विभूति श्रीमान् पंडित श्री मोतीदासजी साहेब ने प्रेस संबंधी तमाम कार्य ध्यानपूर्वक किये हैं और ग्रंथ को सुघड, सुंदर और स्वच्छ छपाई Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com