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________________ [७१] ग्रंथ गर्भावलि । पद्मिनी रूप कन्या अवतारा, गुणवंती शील सुख धारा । बुन्द जमे तो यह फल पावे, ना तो कंद्रप एळे जावे । गुरु दशमी का एही विचारा, दोउ लगन प्रचले जो धारा । बायु तत्व साहेदी देही, बांझ होय पुरुषकी देही । जमे बीज तो एही फल पावे, ना तो मूरख बीज गमावे । भृगु अगियारश कहिए भाई, चले तत्व आकाशकुं जाई । चंद्र चले कन्या तन होई, पुरुष सुख देखे नहि कोई । बालरांड कहावे ऐसा, तत्व आकाशका एही तमाशा । शिर छत्र वाके नहि ठहरे, सोळे शणगार कवु नहि पहिरे । शनिश्वर बारशका एही विचारा, चले सूर जो जलकी धारा । निरधन पुरुष होय जो भारी, अन्नके कारण फिरे भिखारी । रवि तेरस बेदक लगन होई, सूर चले जो जलकी देही । चंद्र सुभाव देही सो होई, मेदल रूप अवतरे सोई । जमे बीज तो यह फल होई, ना तो बीज जमे नहि कोई । सोम चौदश का कह बिचारा, समझे लगन तत्व टकसारा । चंद्र चले वायुकी धारा, त्रिया उपजे बांझ अवतारा । कंद्रप जमे तो यह फल होई, ना तो वीज जमे नहि कोई । रातदिवस की साधे रीत दोई, बेदक लगन दोउके होई । रूंढ मुंढ उपजे नर सोई, बुध पुनमका बुधवंता होई । दोउ बुन्दका जोडा सोई, दोऊ लगन तत्व है दोई । द्विज गुरुका बहुत विधाता, आठम थावर नीच मलेच्छा । गर्भ संदेश संपूरण होई, अब हम बरन सुनावे सोई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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