SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथ गर्भावलि । ७० ] गुरू नीजका एही विशेरखा, चंद्र चले पृथ्वी संग देखा। सो कन्या पतिवरता होई, काष्ट चढे स्वामी संग सोई । जामन जमे तो यह गुन होई, ना तो बीज जमे नहि कोई। चौथ शुक्र बेदक लगन सोई, जमे बीज दोई सुर बहई । पृथ्वी सूर चले जो धारा, हिजरा होय बहु रूप अपारा । पहरे स्वांग त्रियाका सोई, लगन तत्त गहे भेद बिलोई । पांचम शनिश्चर वेदक लगन होई, लखे भेद बिरला जो कोई । चंद सूर बहे घर दोई, ले बीजक तब आन समोई। तेज तत्व पथ्यी घर आवे, पुरुष होय धनको सुख ना पावे । सिल अंग होय हीन कहावे, जल जमे तो यह फल पावे । रवि छठ दोइ होय पूरा, जल पृथ्वी संग उगे मूरा । धनवंत नर होय नर सोई, दान पुन्य करे ना कोई । महा सूम कृपण कहावे, धर्म पुन्य परोस ना सोहावे । जल जमे तो यह गुन होई, ना तो कंद्रप जमे न कोई । सातम सोम एक संग होई, एही भेद कछु कहा न जाई । पवन तत्व चद्र जो धावे, ताम जल जो आन समावे। वा कन्याका करो बखाना, बरनत लक्षण नहि आवे बरना । जावन जमे तो यह फल जाना, कला अनन्त गुन बहुत निधाना। आठम मंगल करो बिचारा, चले सूर वायु की धारा । अष्ट पंगलो उपजे नर सोई, इनकी कुबुधि को वरनि सुनाई । या जावनका एही बिचारा, पूरा ज्ञानी करे निरबारा । बुध नवमी का एही विचारा, चंद्र चले जो जल की धारा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy