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[६७ ] ग्रंथ गर्भावलि । गुरुवारको भेद निन्यारा, दोउ वीर दोउ असवारा । जैसी तिथि तैसी साहेदी देही, तैसो फल प्राप्ति होही ।
कृष्णपक्ष पुरुष लगन। प्रथम पुनम कही विचारा, वार रवि जो आवे वारा । पृथ्वीतत्व साहेदी देही, आकास सुर लगन जो होही । छत्रधारी उपजे निरवाना, चहु चकमे चले जो आना । और तत्व लगन जाय निरासा, जमे नहि नीर गर्भमें आसा । परिवा वार चंद्र शुद्ध धावे, चंद्रलगन तत्ववेरियां आवे । कन्या देही धरे शरीरा, रूपवंत गुन बहुत अपारा । तिथि दजो जो रहे समाई, अफल जाय जमे नहि भाई । बीज मंगलका येहि बिचारा, सूर चले जो जलकी धारा । तेज आय जो साहेदी देही, करे ज्ञान वाकुं कोना गहही। नातो प्रत जमे नहि नीरु, अफल जाय बिंद कहे कबीरु । बुद्ध तीजका एही विचारा, चंद्र चले पृथ्वी की धारा । कन्या होय गुन बहुत प्रकासा, कुटुंब करे सब ताकी आशा । और तत्व जमे नहि भाई, कोट जतन करे जो कोई । चौथ गुरुका एही बिचारा, दोई वीर जो होय असवारा । नर उपजे जो सूरजकी धारा, कन्या होय चंद्रकी लारा । जैसो लगन तैसा फल होई, ना देखे कोई भेद बिलोई । अपने अपने तुरी असवारा, जैसा जावन जमे तेहि बारा । पांचम शुक्रका एही विचारा, सूर चले जो जलतत्वकी धारा ।
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