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बड़ा संतोष बोध। कहौं भेद सुनियो चित लाई, चंद सूर दिन वार बताई । पुरुष कौलमें सातौं वारा, ताका भेद कहौं टकसारा । सप्त पंखुरी जब बिगसाई, सातों वार जहांते आई। आगें वार कौलमें रहेऊ, ताहैं वार ते सातौं कियेऊ । सोई कौलतै सातौं वारा, निस वासर को भयो विचारा । साखी-मंजन कीन्हो कौलको, छोलन पर गया पास । ताते चंद सूर भये, पृथ्वी को परगास ।।
चौपाई। पहिले छोलन जलना रहिया, ताते सूर तेज अनुसरिया । सुनियो चंद केर सितलाई, धर्मदास मैं देहु बताई । सींचौ अमी छोलन पुनि जत्रही, सीतल चंदा उपजो तबही । छोलन चुनी जो झरझर परही, नक्षत्र चंद्रमा संगत करही । यह सब रचना कूर्म हि दीन्हा, पीछे ध्यान अधरमें कीन्हा । रहै जाय कूर्म के पेटा, धर्मराय ता घर नहिं देटा । पुरुष दीन्ह उतपति धर्मराई, धाये कैलरा कूर्म सो जाई । साखी-छीने माथा नखसों, हेरिन सब विस्तार ।
महाशून्य ले गयेऊ, धर्मराय बटपार ॥ कूर्म उदरतें नीकसो, कोइन कीन्ह विचार । मूल बीज जब पावस, भये काल बरियार ॥
चौपाई। निकसी खान वेद रस बानी, चंद सूर औ उडगण जानी । सर्व विस्तार निकस जब आई, धर्म जलनिधि राख छिपाई । आद्या पुरुष दीन्ह पठवाई, आद भवानी अमृत लाई ।
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