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________________ बड़ा संतोष बोध | [ ५८ ] सतगुरु वचन | बानी, सतवचन तो है कहौं बखानी । । खंड प्रेमही । धर्मदास बूझा भल प्रथमही खंड शब्द है भाई, दूजे तीसर खंड सुर्त निरमयेऊ, चौथे पांचे खंड शील है भाई, छठये खंड छिमा सातै खंड संतोष डिढावा, आठै खंड दया समुझावा । खंड भक्ति कहँ दीन्हा, धर्मदास तुम निजके चीन्हा । इन खंडन में खेलै कोई, निवै हंसा लोकको होई । सुनो सात द्वीपनको नाऊ, भिन्नभिन्न के कहि समुझाऊं । वायु तत्व सुन धर्मनि बानी, पवन द्वीपमें जाइ समानी । तत्व अकाश कहौं समुझाई, द्वीप सागर में जाइ समानी । अग्नि तत्व का सुनिये बानी, द्वीप अगिन में जाइ समानी । धरती तत्व अगम कछू होई, द्वीप जलनिधि जाइ समाई । तेज तत्व सो भाष सुनाई, द्वीप शुन्य में जाइ समाई । जलको तत्व कहौं विस्तारा, तेह सुखसागर द्वोप अपारा। सुषमन तत्व कहौं समुझाई, द्वीप अधर में बैठे जाई । साखी - सात द्वीप नौ समाय । । खंड हैं, इनमें रहे कहैं कबीर धर्मदास सौं, निचे लोक सिधाय ॥ खंड निर्त उठ धाई | ठयेऊ । निरमाई | धर्मदास वचन | साहेब भेद कहौ मैं जानी, सात वार कहांते आनी । सतगुरु वचन | धर्मदास बूझ भल नागर, सतसुकृत तुम ज्ञान उजागर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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