SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बड़ा संतोष बोध। [५६] सतगुरु वचन । पौन जीव ब्रह्मंड बनाई, ता पीछे नाभी चलि जाई । नयन नासिका कीन्हौ साखी, मूल कँवल सुर्त गहि राखी । चक्षु जोत तहां बरै मसियारा, हृदय कँवल ब्रह्मंड मँझारा । साखी-बैठत जीव जायके, द्वीपन क्षेत्र मंझार । कहे कबीर धर्मदाससों, ऐसा कीन्ह विचार । चौपाई। सीस सँवार बांह निरमाई, कंठ कँवल मुख हृदय बनाई । तापर छव एक बरण संवारा, पौन जीवसों भौ उजियारा । कँवल संबुज औ सेत है राता, नाभी कीन्ह सकल पुनि गाता। तेहि पीछे दोय खंभ लगाई, रचि काया पुनि जीव समाई । सत्य पौन पुरुष के स्वांसा, सोकीन्हों जीवन संग बासा । ताको मेद सुनो धर्मदासा, तौल लेहुं सत्ताईस मासा । छिन छिन पल पल आवै जाई, जीवको संधि लखे नहि पाई । प्रथम घरी ब्रह्मंड रहाई, दूजे घरी नाभि चल जाई । साखी-तीजे घरिके बीततै, फिर तहवा चल जाई । यह विधि रहनी जीवके, कहें कबीर समुझाई ॥ - धर्मदास वचन । दयावंत प्रभु और बताई, छूटे हंस कौन दिश जाई । तौन ठांव मोहे देही बताई, तहां सुर्त राखौ ठहराई । सतगुरु वचन।। साखी-उत्तर दिशा होय निकसैं, अधरहि बैठे जाय । सो मारग बांकी है, सतगुरु देहि लखाय ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy