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बड़ा संतोष बोध |
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जल के तत्व छूटे जीव जाई, नरकी देह धरे तब आई । सुषमन तत्व में छूटे सरीर, पसु पक्षी अस कहैं कबीर । छै तत्वन का कहा विचारा, तीन तत्वनको भेद निनारा । तीन तत्वन को भेद जो पावैं, निहचै हंसा लोक सिधावैं । तीन तत्व अब प्रगट बताई, जो बुझे सो लोक हि जाई । शब्द तत्व को जानें भाई, सुर्त तत्व को ध्यान लगाई | निर्त तत्व जाके घट होई, आवा गवन रहित तेहि सोई । नौं तत्व का कहा विचारा, धर्मदास तुम करो सम्हारा । कहेउ भेद तत्वनको बानी, छत्र अधर है नाम निसानी । तीन भेद पुरुष के पासा, छोडे काल जीवकी आसा । पुरुष शब्द है सीतल अंगा, तत्व निःक्षर कँवल के संगा । आप पुरुष तेहि पिण्ड न माथा, पुरुष शब्दते देखो माथा । काया मांहि लगी एक नाला, तहँवां हौं निरंजन काला | ता सिर ऊपर पांजी लागे, ता चढ हंसा जैहैं आगे । सेत हैं पीत कँवल हैं राता, तीन तत्व जीव संग रहाता । ताहि तत्व को भाव सुनाई, तीन रूप तिय संग रहाई । काया खेत जा हैं हम दीन्हा, खेत कमाई आगम चीन्हा । सप्त पंखुरी कँवल एक होई, ताकर भेद कहौं मैं सोई । कँवल एक लोक है तीना, तीन लोक दीन्हा प्रवीना । ताकर काल गम्य नहि कीन्हा । गहो शब्द टकसार । कहैं कबीर धर्मदास सौं, उतरो भवजल पार ||
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चौथा लोक अधर कहाँ चीन्हा, साखी - तीनो लोक विचार कैं,
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