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________________ [५३] बड़ा संतोष बोध। चौपाई। छसैं और इकईस हजारा, येते निशदिन दम्म सुधारा । ताको भोजन सब मिल पावै, जो सतगुरु यह भेद बताएँ । बीस सहस्त्र पांच देव पाई, ताको लेख कहौं समुझाई । प्रति देव पीछे चतुर हजारा, सहस्त्र जाप रहु छौं धारा । सोरह से में बाकी रहई, ताकर भेद हंस कोइ गहही । जाप अठोतर जब रहि जाई, तेहि खन शब्द है सुर्त मिलाई। साठ समै बारह चौपाई, ततखन हंसा लोक कहां जाई । साखी-जा दिन काल गरासही, पगते करें उजार । ___भागी जीव चढ बैठें, शब्द के कुलुफ उघार ॥ चौपाई। सुषमन तत्व करें असवारी, तबही कालकी पहुंचे धारी । धर्मदास वचन ।। साहेब तिनका भेद बताई, जाते काल छुवै नहि पाई। नौ तत्वन को कहिये भेदा, एक एक के कहौ निषेदा । सतगुरु वचन । नौं तत्वन को भेद बताऊं, द्वारा तिनका कहि समुझाऊं। वायु तत्वमें छूटे देहा, पवन मंडल में जाय उरेहा । तेज तत्वमें करे पयाना, वज्र शिलामें जाय समाना । अकास तत्व में छूटे भाई, तारागनमें जाय समाई। धरती तत्व छूटे जेहि देहा, जल जीवमें जाय सनेहा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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