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पवन स्वरोदय । [४०]
चार आठ बारह दिना, सोरह बीस बखान । इतने दिन चंदा चले, बढती आव बखान ॥१२७॥ रेचक पूरक कुंभके, योग करे जो कोय । काल बचावें संत सो, मोतिदास सिद्ध होय ॥१२८॥ आसन निद्रा दृढ करे, अन्न जल थोरो खाय । अमी पिये सुरमत चले, ज्ञान त्रिकालहि पाय ॥१२९॥ नीर पवन दोई गहे, सुखपत बिंद रखाव । काल कम दुख भय मिटे, मन वांछित फल पाव ॥१३०॥ पवन सार नित पाठकर, सुर मत निरख चलंत । लछमी तिन के चरण की, दासी होय रहंत ॥१३१॥ काल योगिनी डर नहीं, भद्र योग मत लेख । लगनवारतिथि मत गिनो, स्वरमत गहे विशेष ॥१३२॥ तिस दिनस्वरकोसमझिये, नासा दृष्टि रमाय । मोतिदास सत्र सिद्धि लहै, सकल विघ्न नसि जाय ।।१३३॥ पवनसार यह ग्रंथ है, सूक्षम कह्यो विचार । मोतिदास बरणन कियो, सब ग्रंथन को सार ॥१३४॥ संवत अठारह सौ गये, सत्तासी की साल । कातिक सुद दूज तिथि, चंदा वार विसाल ॥१३५।। ता दिन पँथ पूरण भयो, सतगुरु के उपदेश । लघु मति मोतीदासने, कियो ग्रंथ परवेश ॥१३६॥
॥ इति श्री पवन स्वरोदय ग्रन्थ समाप्तः ॥
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