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________________ [३९] पवन स्वरोदय । दिन ऊगे ते सूर्य सुर, पहर एक ठहरंत । तो कुटुंब में नाश है, चित्त उदास करंत ॥११६॥ दोय पहर सूरज चले, होवै धनको नाश । धाम छुटे तीजे पहर, बरणी मोतीदास ॥११७॥ चार पहर सुर दाहिनो, देह रोग मृतु होय । पांचै राजबिरोध है, छठे क्रोध घर होय ॥११८॥ बैर होय साते पहर, आठे तनकी हानि । तीन वर्ष काया रहे, दिवसरैन चल भान ॥११९॥ दोय रात अरु दोय दिन, सूरज सुर भरपूर । दोय बरष काया रहै, फेर रहे नहि नूर ॥१२०॥ तीन रात दिन तीन लौं, जो सूरज सुर पेख । एक बरष काया रहै, फेर मृत्यु गति लेख ॥१२॥ सूरज सुर दस दिन चले, छठे मास मृतु होय । दिन रवि चंदा रातको, एक मास मृतु सोय ॥१२२॥ निसबासर चंदा दिना, सूरज सुर परकाश । पलभर चंदा ना चले, पंद्रह दिन मृतु बास ॥१२३॥ नौ दिन भृकुटी ना लखे, अनहद बँद दिन सात । सिर धर पहुंचा दीर्घ लख, पँचय दिन मर जात ॥१२४॥ नासाको मित तीन दिन, रसना मित दिन एक । चार घरी मित सुषमना, मोतिदास अवसेक ॥१२५॥ चले पहर भर चंद्रमा, लाभ होय आनंद । चौदह घरि चंदा चले, तो अनेक सुखकंद ॥१२६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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