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________________ पवन स्वरोदय । [३४] हरो वायु उत्तर दिशा, खाटो स्वाद विचार । आंगुर आठ शूद्र वरण, मोतिदास निरधार ॥६३।। दोई स्वर जो चलत हैं, बाहर कढ़ ना कोय । करुवा स्वाद कारों बरण, तत्व अकाश है सोय ॥६४॥ एतवार बुधवार के, भोर पृथ्वी ततराज । शुक्र मंगल प्रातही, अग्नि तत्वको साज ॥६५॥ वायु तत्व गुरुवार को, भोर ही राज करत ॥ सोमवारको प्रात जल, मोतिदास बरपंत ॥६६॥ भोर शनीचर के दिना, आवत तत्व अकाश । दूज वायु नीजे अग्नि, फिर जल पृथ्वी बास ॥६७।। जौन तत्व अरु जाहि दिन, भोर चलत है आय । एक तत्व इक २ घरी, स्वर महं राज कराय ॥६८॥ प्रश्न करे जो आयके, तबहीं तत्व विचार । पृथ्वी तत्वमें लाभ झर, जल जल्दी निरधार ॥६९॥ अग्नि तत्त्वमें हानि करु, निरफल कहो अकाश । पहल तत्वको समुझके, भाषो मोतीदास ॥७॥ (जो) कोई पूछे आयके, (पर)देश गये की बात । बेग आय जल तत्व कहो, पृथ्वी कहो कुशलात ॥७१।। वायु तत्व परदेश ते, गयो औरही देश । अग्नि तत्व बेजार कहु, अकाश तत्व मृतुजेश ॥७२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034841
Book TitleGyan Swaroday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKabir Sadguru
PublisherKabir Dharmvardhak Karyalay
Publication Year1949
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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