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पवन स्वरोदय ।
नैऋत्य दल पर जाय जिव, बुद्धि विवेक प्रकास । पश्चिम दल पर जातहीं, हांसी मोद हुलास ॥१०॥ देश दिशंतर मन उडे, वायव्य दल जिव जान । सम सुभाव जिव करत हैं, उत्तर दल पर आन ॥११॥ राजस भोग 'जु कामना, जिव कर दल ईशान । इक दलते दूजे (दल) गवन, तब जिव सुमरण ध्यान।।१२॥ होय उदय सूरज जबे, जीव पूर्व दल जाय । पहिले तरें ते ऊपरे, फेर तरे जो आय ।।१३।। श्वासा तीस आकाश की, साठ बायुकी जान । नब्बे श्वास जो अग्निकी, जल बीसा सौ मान ॥१४॥ पृथ्वी तत्व की डेढ सौ, श्वासा को परमान । साढि चार सौ श्वास पुनि, पांच तत्त्वकी जान ।।१५।। इक दल पर दो बार जिव, उतर चढे फिर आय । श्वासा नौ सौ होत हैं, मोतिदास समुझाय ॥१६।। यहि विधि आठउ दलन पर, फेरी जीव कराय। सात सहस दो सौ अधिक, श्वासा चलती जाय ॥१७॥ आठ जाम दल आठ पै, तीन बखत जिव जात । इकिस सहस्र छै सौ अधिक, श्वास चलत दिनरात ॥१८॥ नित श्वासा इतनी चले, बढती चले न कोय । बीसा सौ वर्षे जिये, साध साधना लोय ॥१९॥ क्रौड ब्यानवे चलत हैं, उम्मर भर की श्वास । गुरुमुख सुन लखि शास्त्रको, बरणी मोतीदास ॥२०॥
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