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पवन स्वरोदय।
-~*~श्रीसतगुरु तुव चरण पर, शीश धरों शत बार । पवनसार वर्णन करों, मोतिदास निरधार ॥१॥ गुरुगम भेद विचारके, ग्रन्थन का मत देख । मोतिदास संक्षेप कहि, सारंसार विशेष ॥ २ ॥ नाड़ी चारों (सब) आठ सत, और बहत्तर हजार । सबको मूल जो नामि है, मोतिदास निरधार ।। ३ ।। सब नाड़िन में मुख्य दस, दस में तीन विचार । इडा पिंगला सुषमना, मोतिदास त्रय सार ।। ४ ॥ डेरा इड़ा सु चंद सुर, सोई यमुना जान । दहिनो पिंगला सूर्य सुर, गंगा ताको मान ॥ ५॥ दोनौ स्वर सम सरस्वती, सुपमन कहिये सोय । यहै त्रिवेणी स्पृष्टिये, सर्व पाप क्षय होय ॥६॥ नाभि कमलदल अष्ट है, पांच तत्व तहँ बास । पृथ्वी जल अरु अग्नि है, वायुतत्त्व आकाश ।। ७॥ फिरत जीव सब दलनपर, दलपति भिन्न सुभाव । मोतिदास वर्णन करों, सुनो शिष्य सतभाव ॥ ८॥ पूर्व दलनपर ज्ञान मत, अग्नि जु शुद्ध सुभाय । क्रोध करत जिव जानिये, दक्षिण दल पर जाय ॥९॥
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