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ज्ञान स्वरोदय । आसन संजम साध के, दृष्टि श्वास के मांहि । तत्व भेद तब ही मिले, विन साधे कछु नाहि ॥२१६॥ आसन पद्म लगाय के, एक बरन नित साध। बैठे सोये डोलते, श्वासा हिरदै राध ।।२१७।। नाम नासिका मांहि करि, सोहं सोहं जाप । सोहं अजपा जाप है, छूटे पुन औ पाप ॥२१८॥ मेद स्वरोदय बहुत है, सूक्षम कहि समुझाय । ताको सुमति विचार ले, अपने मन चित लाय ॥२१९।। धरनि टरै गिरिवर टरै, धूव टरै सुन मीत । ज्ञान स्वरोदय ना टरै, कहैं कबीर जग जीन ।२२०।। योग युक्ति सों भक्ति करि ब्रह्मज्ञान दृढ होय । आतम तत्त्व विचारि के, अजपा श्वास समोय ।।२२१।। ज्ञान स्वरोदय सार है, सतगुरु कहि समुझाय । जो जन ज्ञानी चित धरै, ब्रह्म रूप को पाय ॥२२२॥ काया को निज भेद है, धर्मनि सुनो सुजान । ज्ञान स्वरोदय खोजि के, येहि बचन परमान ॥२२३॥ सब योगन को योग है, सब ग्रंथन को मीत । सब योगन को ज्ञान है, सत्य कबीर यह गीत ॥२२४॥ इति सद्गुरु कबीर साहिब का ज्ञान स्वरोदय संपूर्ण ॥
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