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ज्ञान स्वरोदय। [२६)
त्रिकोनै पावक चले, धरती तो चौरंग। शून्य स्वभाव अकाश को, पानी लंबो संग ॥२०६।। अग्नि तत्व गुण तामसी, रजगुन समझो वायु । पृथ्वी नीर सतो गुनी, नभ को अस्थिर भाय ॥२०७।। नीर चले जब श्वास में, रन ऊपर चढ मीत । वैरी को सिर काटिके, घर आवै रन जीत ॥२०८॥ पृथ्वी के परकास में, युद्ध करै जो कोय । दो दल रहे बराबरी, हार वायु में होय ॥२०९॥ अग्नि तत्व के चलत ही, युद्ध करने मति जाय । हार होय जीते नहीं, अरु आवे तन घाय ॥२१०॥ तत्त्व अकास में जो चले, उहां रहै जो जाय । रन मांहीं काया तजे, घर नहीं देखे आय ॥२११।। जल पृथ्वी के योग में, गर्भ रहै जो पूत । वायु तत्व में छोकरी, और सूत को सूत ॥२१२।। पृथ्वी तत्व में गर्भ जो, बालक होय सो भूप । धनवंता सो जानिये, सुन्दर होय सरूप ॥२१३।। अग्नि तत्त्व के चलत ही, गर्भ हि में रहि जाय । गर्भ गिर माता दुखी, होते ही मरि जाय ।।२१४॥ वायु तत्त्व सुर दाहिनो, करै पुरुष जो भोग । गर्भ रहै जो ता समय, तन आवै कछु रोग ॥२१५॥
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