________________
[२५]
ज्ञान स्वरोदय । योग युक्ति सो कीजिये, कर अजपा को जाप । आपु हि आप विचारिके, परम तत्व को ज्ञाप ॥१९६॥ सूद्र वैश्य यह शरीर है, ब्राह्मण अरु रजपूत । बूढा बालक तरुन ना, सदा ब्रह्म इक रूप ॥१९७॥ काया माया जानिये, जीव ब्रह्म है मीत । काया छूटे सुरती मिटे, परम तत्व में नीत ॥१९८॥ पाप पुण्य की आस तजो, तजहू मन असथाप । काया मांहि विकार तजु, जपहू अजपा जाप ॥१९९॥ आप भुलाना आप में, बंधा आपहि आप । जाको तूं ढूंढत फिरै, सो तूं आपो आप ॥२००॥ इच्छा देह विसारि के, क्यौं नहि है निर्वास । तो तूं जीवन्मुक्त है, तजो मुक्ति की वास ॥२०॥ पवन भये आकास ते, अग्नि वायु सों होय । पावक सों पानी भयो, पानी धरती सोय ॥२०२॥ धरती मीठो स्वाद है, खार स्वाद सो नीर । अग्नि चरपरो स्वाद है, खाटो स्वाद समीर ॥२०३।। खाटो मीठो चरपरो, खारे प्रेम न होय । तबही तत्त्व विचारिये, चार तत्त्व में सोय ॥२०४॥ स्वाद भिन्न अरु रंग है, और बताई चाल । पांच तत्व की परख है, सिध पावै ततकाल ॥२०५।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com