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ज्ञान स्वरोदय |
जाति चरन कुल देह की, मूर्ति सूर्ति के नाम । उपजै विनसै देह सो, पांच तत्त्व को गाम ॥ १५६ ॥ पावक पानी वायु है, धरती और अकास । पांच पचीस गुन तीन में, आय कियो तहं वास ॥। १५७।। घट उपाधि सों जानिये, करत रहै उतपात । मोह माया लपटात ॥ १५८॥ नभ की इन्द्रिय कान । करि विचार पहिचान ॥ १५९ ॥ इन्द्रिय नैन । सुख चैन ॥ १६० ॥
काम क्रोध और लोभ है, जिभ्या इन्द्रिय नीर की, नासा इन्द्रिय धरनि की, त्वचा इन्द्रिय वायु की, पावक इनको साधे सिद्ध जो, पद पावै निद्रा भाइ आलस पुनि, भूख प्यास जो होय | सत्यकबीर पांचौ कहैं, अग्नि तच्च सो जोय ॥ १६१ ॥ रक्त पीत कफ तीसरो, बिंदु पसीना जान । कहैं कबीर प्रकृति अहै, पानी सो पहिचान || १६२ || हाड चाम नाडी कहूं, रोम और पुनि मांस । पृथ्वी की प्रकृति अहै, अंत सबन को नास ॥ १६३ ॥ | बल करना अरु धावना, प्रसरन करन संकोच । देह बढ़े सो जानिये, वायु तत्र है सोच ॥ १६४॥ काम क्रोध और लोभ है, मोह पुनि अहंकार | तव अकाश प्रकृति है, नित न्यारो तूं सार || १६५ ||
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