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ज्ञान स्वरोदय
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अकाल मृत्यु जो कोई मरें, होय भक्त के भूत ।
बीत जाय श्वामा जौ, तब आवे जम दूत || १४७॥ चारौं संजम साधि के, श्वासा युक्ति मिलाय । अकाल मृत्यु आवै नहीं, जीवें पूरी आय ॥ १४८ ॥ सूक्ष्म भोजन कीजिये, रहिये रहनी सोय । जल थोडासा पीजिये, बहुत बोल मत खोय ॥ १४९ ॥ मोक्ष मुक्ति फल चाहिये, तजो कामना काम । मन की इच्छा मेटिके, भजो सत्य निज नाम ॥ १५० ॥ सोरठा । देहाध्यास मिटाय मिटाय के पांचन के तज कर्म । आप हि आप समाय के छूटे झूठ भरम ॥ १५१ ॥ छूटे दृष्टि देह की, जैसी कहै तैसी रहै । सो तुम कूं कहि दीन, धर्मदास यह मुक्ति है ॥ १५२ ॥
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साखी ।
देह मरे जिव अमर है, पारब्रह्म है सोय । अज्ञानी भटकत फिरे, लखै सो ज्ञानी होय ॥ १५३॥
देह नहीं तो ब्रह्म है, अविनासी निरवान । नित न्यारो तूं देह सौं, देह कर्म सब जान ॥ १५४॥ डोलन बोलन सोवना, भोजन करन अहार ।
दुख सुख मैथुन रोग सब, गरमी सीत निहार ॥ १५५॥
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